बर्तन साफ करते हुए जो सीखा* लॉकडाउन,

कर्फ्यू और बेटी से मुलाकात के लिए दिल्ली गई महारानी का ऐसी परिस्थितियों के बीच इंदौर ना आ पाना।बर्तन-झाडू-पोछे के लिए आने वाली काम वाली बाई की भी ना आ पाने की मजबूरी। मरता क्या ना करता।पहले बर्तन मांजे, फिर झाडू-पोछा।बर्तन साफ करते वक्त समझ आया कि गलती हमारी रहती है और कई बार डांट किसी और को पड़ती है। चाय-दूध के कप-गिलास या रात में खाना खाए बर्तनों में यदि पानी डाल कर रख दें तो बर्तन मांजते वक्त इनके दाग छुड़ाने में अनावश्यक मेहनत नहीं करना पड़े। ढेर सारे बर्तन मांजने के दौरान जब चाय की तपेली, कप, कूकर आदि की अंदरुनी सतह पर हाथ फेरा तो पता चला कि कई जगह सफाई ठीक से नहीं हुई है। दे रगड़, दे रगड़ के बाद संतुष्टि हुई कि अब ठीक से साफ हो गए हैं। मन में जब अपने इस हुनर पर गर्व महसूस हो रहा था तब आंखों के सामने दृश्य गुजर रहा था कि जाने कितनी बार फटकार लगाई कि ‘बाई बर्तन ठीक से मांजा करो, चाय के दाग वगैरह साफ नहीं करती हो।’ पत्रकारिता में परफेक्टनेस तो आज तक आई नहीं, बर्तन मांजने में समय जरूर अधिक लगा लेकिन परफेक्टनेस के साथ ही यह भी सीख मिली कि अंजाने में हम कई बार लोगों पर बेवजह नाराज हो जाते हैं जबकि वे निर्दोष होते हुए भी मजबूरी के कारण चुप रहना बेहतर समझते हैं। 🔹नेगेटिव में भी पॉजिटिव-लॉक डाउन/कर्फ्यू ने ठीक से बर्तन मांजना सिखाया। *बाकी पत्रकार-मित्रों से भाभियां यह सब ना कराएं, यदि भाई लोग वर्क फ्राम होम के दौरान वर्क एट होम के तहत इन दिनों यह सब भी कर रहे हैं तो अपने इस नए काम में भी परफेक्टनेस लाएं। *बर्तन कथा प्रसंग से सीख-जूठे बर्तनों में पानी डालना याद रखे। #लॉकडाउन #कर्फ्यू #महारानी #इंदौर #कामवालीबाई #पत्रकारिता #परफेक्टनेस #पत्रकारमित्रों #भाभियां #नेगेटिवमेंपॉजिटिव Google